मुंबई में मराठी भाषा विवाद: गैर-मराठी भाषियों पर हमले और निष्कासन की मांग
- Digital Bookish
- Jul 14
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मुंबई में भाषा विवाद: गैर-मराठी भाषियों को निष्कासित करने की मांग

मुंबई, भारत की आर्थिक राजधानी और एक सांस्कृतिक रूप से विविध शहर, हाल के दिनों में एक गंभीर भाषा विवाद का केंद्र बन गया है। यह विवाद मराठी भाषा को लेकर है, जो महाराष्ट्र की आधिकारिक भाषा है, और गैर-मराठी भाषियों के खिलाफ कथित हिंसा और निष्कासन की मांगों के इर्द-गिर्द घूम रहा है। इस मुद्दे ने न केवल स्थानीय राजनीति को गरमाया है, बल्कि सामाजिक तनाव को भी बढ़ावा दिया है। इस लेख में, हम इस विवाद के कारणों, हाल के घटनाक्रमों, और इसके सामाजिक और राजनीतिक प्रभावों को विस्तार से समझेंगे।
विवाद की पृष्ठभूमि
मुंबई, जिसे पहले बॉम्बे के नाम से जाना जाता था, एक ऐसा शहर है जो अपनी बहुभाषी और बहुसांस्कृतिक पहचान के लिए प्रसिद्ध है। यहां मराठी, हिंदी, गुजराती, तमिल, मलयालम, पंजाबी, और कई अन्य भाषाएं बोली जाती हैं। 2011 की जनगणना के अनुसार, मुंबई की आबादी में लगभग 45% लोग मराठी को अपनी मातृभाषा मानते हैं, जबकि 20% हिंदी और 20% गुजराती बोलने वाले हैं। इसके अलावा, शहर में उत्तर प्रदेश, बिहार, और अन्य राज्यों से आए प्रवासियों की संख्या में 2001 से 2011 के बीच 40% की वृद्धि हुई है। यह विविधता मुंबई की ताकत रही है, लेकिन हाल के वर्षों में यह भाषाई तनाव का कारण भी बन रही है।
महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (एमएनएस) और शिवसेना (यूबीटी) जैसे क्षेत्रीय राजनीतिक दलों ने मराठी भाषा और संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए अभियान चलाए हैं। इन दलों का दावा है कि गैर-मराठी भाषी, विशेष रूप से हिंदी भाषी प्रवासी, मराठी भाषा और स्थानीय संस्कृति को कमजोर कर रहे हैं। इस मुद्दे ने तब और तूल पकड़ा जब एमएनएस के नेता राज ठाकरे ने एक रैली में कहा कि मुंबई में रहने वाले गैर-मराठी भाषियों को मराठी सीखनी चाहिए। उनके इस बयान के बाद, कई ऐसी घटनाएं सामने आईं जहां गैर-मराठी भाषियों को कथित तौर पर हिंसा का सामना करना पड़ा।
हाल की घटनाएं
हाल के हफ्तों में, मुंबई और इसके आसपास के क्षेत्रों, जैसे मीरा रोड, भायंदर, और पालघर में कई हिंसक घटनाएं दर्ज की गई हैं। कुछ प्रमुख घटनाएं इस प्रकार हैं:

मीरा रोड में दुकानदार पर हमला: 1 जुलाई 2025 को, मीरा रोड पर 'जोधपुर स्वीट शॉप' के मालिक बाबूलाल चौधरी पर एमएनएस कार्यकर्ताओं ने कथित तौर पर हमला किया। कारण था कि उनके कर्मचारी ने हिंदी में बात की थी। हमलावरों ने दुकानदार को मराठी बोलने के लिए मजबूर किया और इस घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया।
पालघर में ऑटो चालक की पिटाई: 13 जुलाई 2025 को, पालघर में एक ऑटो-रिक्शा चालक को शिवसेना (यूबीटी) और एमएनएस कार्यकर्ताओं ने कथित तौर पर पीटा क्योंकि उसने मराठी बोलने से इनकार कर दिया और हिंदी और भोजपुरी में जवाब दिया। चालक को सार्वजनिक रूप से माफी मांगने के लिए मजबूर किया गया।
विरार में सुरक्षा गार्ड पर हमला: मई 2025 में, एक सुरक्षा गार्ड को एमएनएस कार्यकर्ताओं ने कथित तौर पर पीटा क्योंकि उसने कहा कि उसे मराठी नहीं आती। इस घटना ने भी सोशल मीडिया पर काफी हंगामा मचाया।
इन घटनाओं ने न केवल स्थानीय समुदायों में डर का माहौल पैदा किया है, बल्कि राजनीतिक दलों के बीच तनाव को भी बढ़ाया है। एमएनएस और शिवसेना (यूबीटी) ने इन हमलों को मराठी अस्मिता (गौरव) की रक्षा के रूप में उचित ठहराया है, जबकि विपक्षी दल, जैसे कांग्रेस और बीजेपी, ने इसे 'भाषाई आतंकवाद' करार दिया है।
राजनीतिक और सामाजिक प्रभाव
यह विवाद विशेष रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि मुंबई में जल्द ही नगर निगम (बीएमसी) चुनाव होने वाले हैं। बीएमसी भारत की सबसे अमीर नगर निगम है, और इसकी सत्ता पर कब्जा करना सभी राजनीतिक दलों के लिए महत्वपूर्ण है। विश्लेषकों का मानना है कि एमएनएस और शिवसेना (यूबीटी) मराठी भाषा के मुद्दे को भुनाकर मराठी भाषी मतदाताओं को लुभाने की कोशिश कर रहे हैं, जो शहर की आबादी का लगभग 35-45% हिस्सा हैं।
हालांकि, इस तरह की रणनीति ने गैर-मराठी भाषी समुदायों, विशेष रूप से उत्तर भारतीय प्रवासियों, में असुरक्षा की भावना पैदा की है। बीजेपी नेता आशीष शेलार ने इन हमलों की तुलना जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले से की और कहा कि दोनों ही मामलों में हिंदुओं को निशाना बनाया जा रहा है। दूसरी ओर, महाराष्ट्र के मंत्री नितेश राणे ने एमएनएस कार्यकर्ताओं को चुनौती दी कि वे मुस्लिम-बहुल क्षेत्रों जैसे नल बाजार और मोहम्मद अली रोड में जाकर मराठी बोलने की मांग करें।
कांग्रेस ने इस विवाद के जवाब में मीरा रोड पर "हम मराठी हैं, हम भारतीय हैं" नामक एक भाषा कार्यशाला आयोजित की, जिसमें मराठी और हिंदी भाषी नागरिकों को एक साथ लाने की कोशिश की गई। इसके अलावा, बीजेपी ने मराठी और गैर-मराठी समुदायों के बीच सौहार्द बढ़ाने के लिए मुफ्त मराठी भाषा कक्षाएं शुरू की हैं।
गैर-मराठी भाषियों का दृष्टिकोण

कई गैर-मराठी भाषी मुंबईकरों ने इस विवाद पर अपनी राय व्यक्त की है। उदाहरण के लिए, अभिनेता आर. माधवन, जो तमिल मूल के हैं और मुंबई में रहते हैं, ने कहा कि उन्हें कभी भी भाषा के कारण कोई परेशानी नहीं हुई। उन्होंने बताया कि वे हिंदी, तमिल, और मराठी बोलते हैं और मुंबई की बहुभाषी संस्कृति को अपनाते हैं।,
इसी तरह, कई प्रवासी मुंबईकरों ने बताया कि वे इस शहर को अपना घर मानते हैं, भले ही वे मराठी न बोलें। एक गैर-मराठी मुंबईकर ने मिड-डे को बताया, "मैंने 2011 में मुंबई में नौकरी शुरू की और मुझे कभी भाषा के कारण कोई समस्या नहीं हुई। यह शहर सभी को गले लगाता है।"
निष्कासन की मांग
शिवसेना (यूबीटी) ने हाल ही में एक और विवादास्पद मांग उठाई है कि मुंबई की इमारतों में 20% घर मराठी भाषी लोगों के लिए आरक्षित किए जाएं। यह मांग इस डर से उपजी है कि मराठी भाषी लोग अपनी ही राजधानी में अल्पसंख्यक बनते जा रहे हैं। हालांकि, इस मांग को कई लोगों ने अव्यवहारिक और भेदभावपूर्ण बताया है।
कुछ सोशल मीडिया पोस्ट्स में यह भी दावा किया गया है कि गैर-मराठी भाषियों को मुंबई से बाहर निकालने की मांग की जा रही है। उदाहरण के लिए, एक एक्स पोस्ट में कहा गया कि कुछ लोग चाहते हैं कि मुंबई में केवल मराठी भाषी ही व्यवसाय करें, जैसा कि कश्मीर में कुछ स्थानीय नियम हैं। हालांकि, यह मांग अभी तक मुख्यधारा की राजनीति में औपचारिक रूप से नहीं उठी है।
आलोचना और जवाबी तर्क
इस विवाद की कई स्तरों पर आलोचना हो रही है। कुछ लोगों का मानना है कि यह भाषा विवाद केवल एक राजनीतिक हथकंडा है, जिसका उद्देश्य मराठी मतदाताओं को एकजुट करना है। द ट्रिब्यून में प्रकाशित एक लेख में कहा गया कि "यह विवाद संस्कृति को संरक्षित करने के बारे में नहीं है, बल्कि सत्ता की राजनीति के लिए एक हथियार है।"
वहीं, एक स्टार्टअप संस्थापक अक्षत श्रीवास्तव ने सुझाव दिया कि जो लोग भाषा के कारण दबाव महसूस कर रहे हैं, वे दुबई या सिंगापुर जैसे देशों में जा सकते हैं, जहां स्थानीय भाषा सीखना अनिवार्य नहीं है। हालांकि, इस बयान की भी आलोचना हुई, क्योंकि इसे मुंबई की समावेशी संस्कृति के खिलाफ माना गया।
संबंधित प्रश्न और उत्तर
प्रश्न 1: क्या मुंबई में गैर-मराठी भाषियों को वास्तव में निष्कासित किया जा रहा है?
उत्तर: नहीं, गैर-मराठी भाषियों को मुंबई से निष्कासित करने का कोई आधिकारिक आदेश या नीति नहीं है। हालांकि, कुछ क्षेत्रीय दलों और कार्यकर्ताओं ने मराठी भाषा को अनिवार्य करने की मांग की है, और गैर-मराठी भाषियों पर हमले की घटनाएं सामने आई हैं। ये घटनाएं व्यक्तिगत या समूह-आधारित हैं और सरकार द्वारा समर्थित नहीं हैं।
प्रश्न 2: मराठी भाषा विवाद का मुख्य कारण क्या है?
उत्तर: यह विवाद मराठी भाषा और संस्कृति को संरक्षित करने की मांग से शुरू हुआ, जिसे कुछ क्षेत्रीय दल हिंदी और अन्य भाषाओं के बढ़ते प्रभाव के खिलाफ देखते हैं। इसके पीछे राजनीतिक लाभ और बीएमसी चुनावों में मराठी मतदाताओं को लुभाने की रणनीति भी मानी जा रही है।
प्रश्न 3: क्या गैर-मराठी भाषी मुंबई में सुरक्षित हैं?
उत्तर: हालांकि हाल की घटनाओं ने गैर-मराठी भाषी समुदायों में डर पैदा किया है, मुंबई सामान्य रूप से एक सुरक्षित और समावेशी शहर है। पुलिस और प्रशासन ने हिंसक घटनाओं के खिलाफ कार्रवाई करने का वादा किया है, लेकिन अभी तक कई मामलों में ठोस कार्रवाई का अभाव दिखा है।
पहले क्या हुआ था?
यह विवाद नया नहीं है। पहले भी, विशेष रूप से 2008-2009 में, एमएनएस ने गैर-मराठी भाषी प्रवासियों, विशेष रूप से उत्तर भारतीयों, के खिलाफ अभियान चलाया था। उस समय भी दुकानदारों, टैक्सी चालकों, और अन्य प्रवासियों को निशाना बनाया गया था। हाल के वर्षों में, मराठी भाषा को स्कूलों में अनिवार्य करने के सरकारी आदेश और हिंदी को प्राथमिकता देने के कथित प्रयासों ने इस तनाव को और बढ़ाया है।
पिछले महीने, 5 जुलाई 2025 को, उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे ने मुंबई के एनएससीआई डोम में एक "विजय" रैली आयोजित की थी, जिसमें उन्होंने मराठी भाषा और पहचान को "हटाने" की कोशिशों का विरोध किया। इस रैली के बाद, हिंसक घटनाओं में वृद्धि देखी गई, जिसने इस विवाद को और भड़काया।
निष्कर्ष
मुंबई का मराठी भाषा विवाद एक जटिल मुद्दा है, जिसमें भाषा, संस्कृति, और राजनीति का मिश्रण है। हालांकि मराठी भाषा और संस्कृति को संरक्षित करने की मांग वैध हो सकती है, लेकिन हिंसा और गैर-मराठी भाषियों को निशाना बनाना न केवल गलत है, बल्कि यह मुंबई की समावेशी पहचान को भी नुकसान पहुंचा सकता है। इस मुद्दे का समाधान केवल आपसी संवाद, सम्मान, और समावेशी नीतियों के माध्यम से संभव है।
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