बिहार में SIR विवाद: अभिषेक मनु सिंघवी और विपक्ष की सुप्रीम कोर्ट जाने की रणनीति
- Digital Bookish
- Jul 14
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बिहार में विधानसभा चुनावों से पहले राजनीतिक तनाव अपने चरम पर है। विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision - SIR) प्रक्रिया को लेकर विपक्ष और सत्तारूढ़ दल के बीच तीखी बहस छिड़ गई है।

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और सुप्रीम कोर्ट के प्रसिद्ध वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने इस मुद्दे पर विपक्ष की ओर से आवाज उठाई है, और संकेत दिए हैं कि वे इस प्रक्रिया को रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकते हैं। यह लेख इस विवाद के हर पहलू को विस्तार से समझाएगा, जिसमें SIR क्या है, इसके पीछे का विवाद, और यह बिहार के चुनावी परिदृश्य को कैसे प्रभावित कर सकता है।
SIR क्या है?
विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) भारत के निर्वाचन आयोग (Election Commission of India - ECI) द्वारा शुरू की गई एक प्रक्रिया है, जिसका उद्देश्य बिहार की मतदाता सूची को अद्यतन करना और उसमें शामिल गलत या अनुपयुक्त नामों को हटाना है। इस प्रक्रिया के तहत, 2003 के बाद मतदाता सूची में शामिल हुए व्यक्तियों को "संदिग्ध मतदाता" के रूप में चिह्नित किया गया है, और उनसे अपनी नागरिकता साबित करने के लिए दस्तावेज प्रस्तुत करने की मांग की गई है। निर्वाचन आयोग का कहना है कि यह प्रक्रिया शहरीकरण, प्रवास, नए मतदाताओं के पंजीकरण, मृत्यु की गैर-रिपोर्टिंग, और अवैध विदेशी नागरिकों के नाम शामिल होने जैसे कारणों से आवश्यक हो गई है।
हालांकि, विपक्ष का दावा है कि यह प्रक्रिया न केवल असंवैधानिक है, बल्कि यह लाखों वैध मतदाताओं को मताधिकार से वंचित करने का एक सुनियोजित प्रयास भी है।
अभिषेक मनु सिंघवी और विपक्ष का रुख
अभिषेक मनु सिंघवी, जो भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC) के प्रवक्ता और तेलंगाना से राज्यसभा सांसद हैं, ने INDIA ब्लॉक की ओर से इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में बहस की है। उन्होंने 12 जुलाई 2025 को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में SIR प्रक्रिया के खिलाफ पांच प्रमुख आपत्तियां उठाईं:

संदिग्ध मतदाताओं का चिह्नीकरण: सिंघवी ने कहा कि 2003 के बाद मतदाता सूची में शामिल हुए लोगों को "संदिग्ध मतदाता" के रूप में चिह्नित करना गलत है। उनका तर्क है कि जो लोग वर्षों से मतदाता सूची में हैं और कई बार मतदान कर चुके हैं, उन्हें अपनी नागरिकता साबित करने के लिए मजबूर करना अन्यायपूर्ण है।
नागरिकता साबित करने की जिम्मेदारी: सिंघवी ने इस बात पर जोर दिया कि नागरिकता साबित करने की जिम्मेदारी मतदाताओं पर डालना अनुचित है। यह बोझ निर्वाचन आयोग पर होना चाहिए, क्योंकि मतदाता पहले ही पंजीकरण प्रक्रिया से गुजर चुके हैं।
प्रशासनिक आदेश द्वारा प्रक्रिया: सिंघवी ने तर्क दिया कि यह पूरी प्रक्रिया एक प्रशासनिक आदेश के माध्यम से की जा रही है, बिना किसी कानूनी संशोधन के। उन्होंने कहा कि निर्वाचन आयोग के पास नागरिकता की जांच करने का कानूनी अधिकार नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट के पूर्व निर्णय का उल्लंघन: सिंघवी ने एक पुराने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि मतदाता सूची में पहले से शामिल नामों को बिना उचित न्यायिक प्रक्रिया के हटाया नहीं जा सकता। SIR प्रक्रिया इस नियम का उल्लंघन करती है, क्योंकि यह प्रशासनिक आदेश के आधार पर जल्दबाजी में की जा रही है।
विशाल स्तर पर प्रभाव: सिंघवी ने चेतावनी दी कि बिहार के 8 करोड़ मतदाताओं में से लगभग 5 करोड़ को "संदिग्ध" के रूप में चिह्नित किया गया है। यदि इनमें से 2 करोड़ मतदाताओं को मतदान से वंचित किया जाता है, तो यह स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव की मूल भावना को नुकसान पहुंचाएगा।
सिंघवी ने इस प्रक्रिया को "खतरनाक और विचित्र" करार देते हुए कहा कि यह संविधान की मूल संरचना को धमकी देता है।
सुप्रीम कोर्ट का आदेश और प्रतिक्रिया

11 जुलाई 2025 को, सुप्रीम कोर्ट ने निर्वाचन आयोग को SIR प्रक्रिया जारी रखने की अनुमति दी, लेकिन कुछ शर्तों के साथ। जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस जोयमाला बागची की बेंच ने निर्देश दिया कि ECI को आधार कार्ड, मतदाता पहचान पत्र, और राशन कार्ड जैसे दस्तावेजों को मतदाता की पहचान साबित करने के लिए स्वीकार करना चाहिए। सिंघवी ने इसे "लोकतंत्र के लिए एक महत्वपूर्ण प्रगति" करार दिया, क्योंकि ये दस्तावेज लगभग 90% मतदाताओं को कवर करते हैं, जो अन्यथा बाहर हो सकते थे।
कांग्रेस ने इस फैसले का स्वागत किया, लेकिन साथ ही बीजेपी पर "दुष्प्रचार और तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश करने" का आरोप लगाया। सिंघवी ने स्पष्ट किया कि विपक्ष ने कभी भी SIR प्रक्रिया पर पूरी तरह से रोक लगाने की मांग नहीं की थी, जैसा कि बीजेपी ने दावा किया।
सिंघवी ने आधार कार्ड को नागरिकता के प्रमाण के रूप में अस्वीकार करने की आलोचना की। उन्होंने मजाकिया लहजे में कहा, "भारत आधार पर चलता है - राशन से लेकर रेल तक - लेकिन चुनावों के लिए यह अचानक एक परीकथा बन जाता है?" उन्होंने सरकार पर पाखंड का आरोप लगाया, क्योंकि सरकार ने पहले आधार को कानूनी रूप से स्वीकार करने के लिए कानून में संशोधन किया था, लेकिन अब इसे चुनावी प्रक्रिया से बाहर कर दिया गया।
विपक्ष की रणनीति और सुप्रीम कोर्ट की भूमिका
विपक्ष, जिसमें कांग्रेस, राजद, तृणमूल कांग्रेस, और अन्य दल शामिल हैं, ने SIR को चुनौती देने के लिए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। याचिकाकर्ताओं में राजद सांसद मनोज झा, तृणमूल कांग्रेस की महुआ मोइत्रा, और एक्टिविस्ट योगेंद्र यादव शामिल हैं। इन याचिकाओं में दावा किया गया है कि SIR प्रक्रिया संविधान के अनुच्छेद 14, 19(1)(a), 21, 325, और 328, साथ ही प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 और पंजीकरण नियम, 1960 का उल्लंघन करती है।
कांग्रेस के महासचिव केसी वेणुगोपाल ने कहा कि SIR प्रक्रिया ने बिहार के गांवों और कस्बों में "अराजकता" फैला दी है, और करोड़ों मतदाताओं को अपनी वोटिंग अधिकार खोने का डर है। उन्होंने इसे "बड़े पैमाने पर हेराफेरी और शरारत" का हिस्सा बताया, जो बीजेपी के निर्देशों पर ECI द्वारा किया जा रहा है।
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को गंभीरता से लिया और 10 जुलाई 2025 को याचिकाओं पर सुनवाई की। कोर्ट ने प्रक्रिया पर अंतरिम रोक लगाने से इनकार कर दिया, लेकिन ECI को निर्देश दिया कि वह प्रक्रिया को अधिक समावेशी बनाए। SIR का बिहार के चुनावों पर प्रभाव

बिहार में विधानसभा चुनाव नजदीक हैं, और SIR प्रक्रिया का समय विवाद का एक बड़ा कारण बन गया है। सिंघवी ने सवाल उठाया कि जब 2003 के बाद से दस चुनाव हो चुके हैं, तो अब अचानक इस प्रक्रिया की क्या जरूरत थी? उन्होंने कहा कि पिछली बार ऐसी प्रक्रिया 2004 के लोकसभा चुनाव से एक साल पहले और विधानसभा चुनाव से दो साल पहले की गई थी।
विपक्ष का दावा है कि यह प्रक्रिया विशेष रूप से गरीब, मजदूर, और अल्पसंख्यक समुदायों को प्रभावित करेगी, जो अक्सर बाढ़ या काम के लिए प्रवास के कारण दस्तावेज पेश करने में असमर्थ हो सकते हैं।
बीजेपी की प्रतिक्रिया
बीजेपी ने विपक्ष के दावों को खारिज करते हुए इसे "दुष्प्रचार" करार दिया। बीजेपी नेता गौरव भाटिया ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने SIR पर रोक नहीं लगाई, और बिहार की जनता इस फैसले का स्वागत कर रही है।
निष्कर्ष
बिहार में SIR विवाद एक जटिल और संवेदनशील मुद्दा बन गया है, जो न केवल चुनावी प्रक्रिया की निष्पक्षता पर सवाल उठाता है, बल्कि लोकतंत्र की मूल भावना को भी चुनौती देता है। अभिषेक मनु सिंघवी और विपक्ष की सुप्रीम कोर्ट में कानूनी लड़ाई इस बात का संकेत है कि यह मामला अभी खत्म नहीं हुआ है। सुप्रीम कोर्ट का अंतिम फैसला बिहार के चुनावी परिदृश्य को नया आकार दे सकता है।
क्या यह प्रक्रिया वास्तव में मतदाता सूची को शुद्ध करने का प्रयास है, या यह एक राजनीतिक रणनीति है? यह सवाल बिहार की जनता के बीच चर्चा का विषय बना हुआ है। आने वाले दिन इस विवाद के भविष्य को और स्पष्ट करेंगे।
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